कुछ बस न चला जज़्बा-ए-ख़ुद-काम के आगे
कुछ बस न चला जज़्बा-ए-ख़ुद-काम के आगे
झुकना ही पड़ा उस बुत-ए-बदनाम के आगे
इक और भी हसरत है पस-ए-हसरत-ए-दीदार
इक और भी आग़ाज़ है अंजाम के आगे
आ और इधर कोई तजल्ली की किरन फेंक
बैठे हैं गदा तेरे दर-ओ-बाम के आगे
ये इश्क़ है बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल नहीं है
कुछ और भी है कूचा-ए-असनाम के आगे
यूँ उन की जफ़ाओं से मिली हम को बसीरत
हम झुक न सके गर्दिश-ए-अय्याम के आगे
दिन ढलने लगा दिल-ज़दगाँ दिल की ख़बर लो
इक सिलसिला-ए-हिज्र भी है शाम के आगे
अब कुछ भी नहीं हासिल-ए-तदबीर-ए-मोहब्बत
अब कुछ भी नहीं नामा-ओ-पैग़ाम के आगे
इक सेहर सा तारी था 'ज़हीर' अहल-ए-ख़िरद पर
थे मोहर-ब-लब हुस्न-ए-दिल-आराम के आगे
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