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किस को मिली तस्कीन-ए-साहिल किस ने सर मंजधार किया - ज़हीर काश्मीरी कविता - Darsaal

किस को मिली तस्कीन-ए-साहिल किस ने सर मंजधार किया

किस को मिली तस्कीन-ए-साहिल किस ने सर मंजधार किया

उस तूफ़ान से गुज़रे जिस ने नदी नदी को पार किया

ऐ फ़रज़ानो! दीवानों के जज़्बा-ए-दिल की क़द्र करो

उन की एक नज़र ने आतिश आतिश को गुलज़ार किया

रंज-ए-मोहब्बत रंज-ए-ज़माना दोनों हम से ख़ाइफ़ हैं

हम ने सोच समझ कर दिल को सरगर्म-ए-पैकार किया

सहरा सहरा हम ने नोक-ए-ख़ार से तलवे सहलाए

महफ़िल महफ़िल हम ने अपनी वहशत का इक़रार किया

उन से कह दो सामने आ कर अपने जल्वे आम करें

ख़ल्वत-ए-नाज़ में छुप न सकेंगे हम ने अगर इसरार किया

हम ने अपने इश्क़ की ख़ातिर ज़ंजीरें भी देखीं हैं

हम ने उन के हुस्न की ख़ातिर रक़्स भी ज़ेर-ए-दार किया

बस्ती बस्ती आज हमारी सई-ए-वफ़ा की शोहरत है

हम ने 'ज़हीर' इक आलम को पाबंद-ए-निगाह-ए-यार किया

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