इश्क़ इक हिकायत है सरफ़रोश दुनिया की
इश्क़ इक हिकायत है सरफ़रोश दुनिया की
हिज्र इक मसाफ़त है बे-निगार सहरा की
उन के रू-ब-रू निकले नुत्क़ ओ लफ़्ज़ बे-मअ'नी
बात ही अजब लेकिन ख़ामुशी ने पैदा की
वक़्त के तसलसुल में हम ब-रंग-ए-शोला थे
उम्र-ए-यक-नफ़स में भी रौशनी थे दुनिया की
हम को सहल-अँगारी ग़र्क़ कर चुकी होती
हिम्मत-आफ़रीं निकली लहर लहर दरिया की
यूँ तो वो फ़िरोकश थे जादा-ए-रग-ए-जां में
मावरा-ए-इम्काँ थी रौशनी कफ़-ए-पा की
शम-ए-महफ़िल-ए-यक-शब और तूल-ए-फ़िक्र इतना
कौन शख़्स था जिस ने आरज़ू-ए-फ़र्दा की
हम भी हैं निको-सूरत हम भी नेक-सीरत हैं
हम ने बंदगी की है इक जमाल-ए-रअना की
(1027) Peoples Rate This