Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_c227a97e2f007af8532d9c012451b43c, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
फ़िराक़-ए-यार के लम्हे गुज़र ही जाएँगे - ज़हीर काश्मीरी कविता - Darsaal

फ़िराक़-ए-यार के लम्हे गुज़र ही जाएँगे

फ़िराक़-ए-यार के लम्हे गुज़र ही जाएँगे

चढ़े हुए हैं जो दरिया उतर ही जाएँगे

तमाम रात दर-ए-मै-कदा पे काटी है

सहर क़रीब है अब अपने घर ही जाएँगे

तू मेरे हाल-ए-परेशाँ का कुछ ख़याल न कर

जो ज़ख़्म तू ने लगाए हैं भर ही जाएँगे

मियान-दार-ओ-शबिस्तान-ए-यार बैठे हैं

जिधर इशारा-ए-दिल हो उधर ही जाएँगे

जुलूस-ए-नाज़ कभी तो इधर से गुज़रेगा

कभी तो दिल के मुक़द्दर सँवर ही जाएँगे

यही रहेगा जो अंदाज़-ए-ना-शनासाई

तुम्हारे चाहने वाले तो मर ही जाएँगे

अभी छिड़ी भी न थी दास्तान-ए-अहद-ए-वफ़ा

किसे ख़बर थी कि वो यूँ मुकर ही जाएँगे

जमाल-ए-यार की नादीदा ख़ल्वतों में 'ज़हीर'

अगर गए तो ये आशुफ़्ता-सर ही जाएँगे

(1956) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Firaq-e-yar Ke Lamhe Guzar Hi Jaenge In Hindi By Famous Poet Zaheer Kashmiri. Firaq-e-yar Ke Lamhe Guzar Hi Jaenge is written by Zaheer Kashmiri. Complete Poem Firaq-e-yar Ke Lamhe Guzar Hi Jaenge in Hindi by Zaheer Kashmiri. Download free Firaq-e-yar Ke Lamhe Guzar Hi Jaenge Poem for Youth in PDF. Firaq-e-yar Ke Lamhe Guzar Hi Jaenge is a Poem on Inspiration for young students. Share Firaq-e-yar Ke Lamhe Guzar Hi Jaenge with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.