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अब इश्क़ से लौ लगाएँगे हम - ज़हीर काश्मीरी कविता - Darsaal

अब इश्क़ से लौ लगाएँगे हम

अब इश्क़ से लौ लगाएँगे हम

अब दिल के भी काम आएँगे हम

जब झुटपुटा होगा शाम-ए-ग़म का

पलकों पे दिए जलाएँगे हम

हम बन गए हैं अदा तुम्हारी

छेड़ोगे तो रूठ जाएँगे हम

ऐ मूनिस-ए-दिल ऐ हिज्र की रात

ले चल दिए अब न आएँगे हम

क्या बैठे-बिठाए हो गया है

पूछेंगे तो क्या बताएँगे हम

वो आँख बड़ी जहाँ-नुमा है

उस आँख से क्या छुपाएँगे हम

सहरा तो 'ज़हीर' तंग निकला

अब देखें किधर को जाएँगे हम

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