ज़हीर काश्मीरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़हीर काश्मीरी
नाम | ज़हीर काश्मीरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Zaheer Kashmiri |
जन्म की तारीख | 1919 |
मौत की तिथि | 1994 |
जन्म स्थान | Lahore |
वो बज़्म से निकाल के कहते हैं ऐ 'ज़हीर'
उन्हीं की हसरत-ए-रफ़्ता की यादगार हूँ मैं
तू मिरी ज़ात मिरी रूह मिरा हुस्न-ए-कलाम
तन्हाइयों में आती रही जब भी उस की याद
तमाम उम्र तिरी हम-रही का शौक़ रहा
सूने पड़े हैं दिल के दर-ओ-बाम ऐ 'ज़हीर'
सीरत न हो तो आरिज़-ओ-रुख़्सार सब ग़लत
मुझ से बिछड़ कर पहरों रोया करता था
मैं ने उस को अपना मसीहा मान लिया
कुल काएनात फ़िक्र से आज़ाद हो गई
कोई दस्तक कोई आहट न शनासा आवाज़
कितना दिलकश है तिरी याद का पाला हुआ अश्क
जब ख़ामुशी ही बज़्म का दस्तूर हो गई
इश्क़ जब तक न आस-पास रहा
इश्क़ इक हिकायत है सरफ़रोश दुनिया की
इस दौर-ए-आफ़ियत में ये क्या हो गया हमें
हम ने अपने इश्क़ की ख़ातिर ज़ंजीरें भी देखीं हैं
हम ख़ुद ही बे-लिबास रहे इस ख़याल से
होती न हम को साया-ए-दीवार की तलाश
हिज्र के दौर में हर दौर को शामिल कर लें
हमें ख़बर है कि हम हैं चराग़-ए-आख़िर-ए-शब
हमारे पास कोई गर्दिश-ए-दौराँ नहीं आती
हमारे इश्क़ से दर्द-ए-जहाँ इबारत है
फ़र्ज़ बरसों की इबादत का अदा हो जैसे
दिल भी सनम-परस्त नज़र भी सनम-परस्त
बर्क़-ए-ज़माना दूर थी लेकिन मिशअल-ए-ख़ाना दूर न थी
बढ़ गए हैं इस क़दर क़ल्ब ओ नज़र के फ़ासले
बड़े दिल-कश हैं दुनिया के ख़म ओ पेच
आह ये महकी हुई शामें ये लोगों के हुजूम
ये कारोबार-ए-चमन इस ने जब सँभाला है