साक़िया मर के उठेंगे तिरे मय-ख़ाने से
साक़िया मर के उठेंगे तिरे मय-ख़ाने से
अहद-ओ-पैमाँ हैं यही ज़ीस्त में पैमाने से
तू कहाँ आई मिरा दर्द बटाने के लिए
ऐ शब-ए-हिज्र निकल जा मिरे ग़म-ख़ाने से
कौन होता है मुसीबत में किसी का दिल-सोज़
उठ गई शम्अ' भी जल कर मिरे काशाने से
कुछ यही कोहकन-ओ-क़ैस पे गुज़री होगी
मिलती-जुलती है कहानी मिरे अफ़्साने से
जुब्बा-फ़रसा-ए-दर-ए-का'बा थे कल तक तो 'ज़हीर'
गिरते पड़ते हुए आज आते हैं मयख़ाने से
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