नसीहत-गरो दिल लगाया तो होता
नसीहत-गरो दिल लगाया तो होता
कभी ख़ंजर-ए-इश्क़ खाया तो होता
न आता कि आता शिकायत न रहती
मुझे अंजुमन में बुलाया तो होता
न मानूँगा नासेह कि दिल पर है क़ाबू
लगा कर किसी से दिखाया तो होता
ये माना अदू पर है मैलान-ए-ख़ातिर
कोई रोज़ उस को सताया तो होता
न आते तो ख़ंजर ही वो भेज देते
कि हम ने गले से लगाया तो होता
मिरी सख़्त-जानी के शिकवे बजा थे
कभी दस्त-ए-नाज़ुक उठाया तो होता
'ज़हीर' आज दावा है जिन को ज़बाँ का
सुख़न अपना उन को सुनाया तो होता
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