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जाते हो तुम जो रूठ के जाते हैं जी से हम - ज़हीर देहलवी कविता - Darsaal

जाते हो तुम जो रूठ के जाते हैं जी से हम

जाते हो तुम जो रूठ के जाते हैं जी से हम

तुम क्या ख़फ़ा हो ख़ुद हैं ख़फ़ा ज़िंदगी से हम

कुछ ऐसे बद-हवास हैं दिल की लगी से हम

कहते हैं मुद्दआ-ए-दिल मुद्दई से हम

बे-ज़ार हो चुके हैं बहुत दिल-लगी से हम

बस हो तो उम्र भर न मिलें अब किसी से हम

ये जानते तो शिकवे न करते रक़ीब के

कहते हैं तेरी ज़िद से मिलेंगे उसी से हम

मुजरिम है कौन दोनों में इंसाफ़ कीजिए

छुप छुप के आप मिलते हैं या मुद्दई से हम

हम और चाह ग़ैर की अल्लाह से डरो

मिलते हैं तुम से भी तो तुम्हारी ख़ुशी से हम

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