सिर्फ़ ज़फ़र 'ताबिश' हैं हम
'ग़ालिब' 'मीर' न 'हाली' हैं
Wasi Shah
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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Ahmad Faraz
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Parveen Shakir
Javed Akhtar
Gulzar
Mir Taqi Mir
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बस्ती बस्ती जंगल जंगल घूमा मैं
न कहो तुम भी कुछ न हम बोलें
ब-ज़ाहिर यूँ तो मैं सिमटा हुआ हूँ
कितने हाथ सवाली हैं
गिर गए जब सब्ज़ मंज़र टूट कर
मंज़र से ला-मंज़र तक
सो रहे थे शहर भी जंगल भी जब
क्या जाने क्यूँ जलती है