न कहो तुम भी कुछ न हम बोलें
आओ ख़ामोशियों के लब खोलें
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
Parveen Shakir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(815) Peoples Rate This
कितने हाथ सवाली हैं
क्या जाने क्यूँ जलती है
ब-ज़ाहिर यूँ तो मैं सिमटा हुआ हूँ
बस्ती बस्ती जंगल जंगल घूमा मैं
मंज़र से ला-मंज़र तक
सो रहे थे शहर भी जंगल भी जब
जब भी झुक कर मिलता हूँ मैं लोगों से
आँगन-आँगन जारी धूप