जब भी झुक कर मिलता हूँ मैं लोगों से
हो जाता हूँ अपने क़द से ऊँचा मैं
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(999) Peoples Rate This
आँगन-आँगन जारी धूप
सिर्फ़ ज़फ़र 'ताबिश' हैं हम
गिर गए जब सब्ज़ मंज़र टूट कर
सो रहे थे शहर भी जंगल भी जब
न कहो तुम भी कुछ न हम बोलें
बस्ती बस्ती जंगल जंगल घूमा मैं
ब-ज़ाहिर यूँ तो मैं सिमटा हुआ हूँ
क्या जाने क्यूँ जलती है
मंज़र से ला-मंज़र तक