आँगन-आँगन जारी धूप

आँगन-आँगन जारी धूप

मेरे घर भी आरी धूप

क्या जाने क्यूँ जलती है

सदियों से बिचारी धूप

किस के घर तू ठहरेगी

तू तो है बंजारी धूप

अब तो जिस्म पिघलते हैं

जारी जा अब जारी धूप

छुप गई काले बादल में

मौसम से जब हारी धूप

हो जाती है सर्द कभी

और कभी चिंगारी धूप

आज बहुत है अँधियारा

चुपके से आ जारी धूप

(772) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Aangan-angan Jari Dhup In Hindi By Famous Poet Zafar Tabish. Aangan-angan Jari Dhup is written by Zafar Tabish. Complete Poem Aangan-angan Jari Dhup in Hindi by Zafar Tabish. Download free Aangan-angan Jari Dhup Poem for Youth in PDF. Aangan-angan Jari Dhup is a Poem on Inspiration for young students. Share Aangan-angan Jari Dhup with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.