जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी
रौशनी इक ना-मुकम्मल सी कहानी पर पड़ी
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रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे
बे-हिसी पर हिस्सियत की दास्ताँ लिख दीजिए
ये क्या तहरीर पागल लिख रहा है
चिलचिलाती धूप ने ग़ुस्सा उतारा हर जगह
ये अमल रेत को पानी नहीं बनने देता
शब के ग़म दिन के अज़ाबों से अलग रखता हूँ
अमीर-ए-शहर इस इक बात से ख़फ़ा है बहुत
शिकायतों की अदा भी बड़ी निराली है
दिलों के बीच न दीवार है न सरहद है
कभी कभी कोई चेहरा ये काम करता है