Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_4afa01babd46d4dfb428187ee32a197e, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
नक़ाब उस ने रुख़-ए-हुस्न-ए-ज़र पे डाल दिया - ज़फ़र मुरादाबादी कविता - Darsaal

नक़ाब उस ने रुख़-ए-हुस्न-ए-ज़र पे डाल दिया

नक़ाब उस ने रुख़-ए-हुस्न-ए-ज़र पे डाल दिया

कि जैसे शब का अंधेरा सहर पे डाल दिया

समाअतें हुईं पुर-शौक़ हादसों के लिए

ज़रा सा रंग-ए-बयाँ जब ख़बर पे डाल दिया

तमाम उस ने महासिन में ऐब ढूँड लिए

जो बार-ए-नक़्द-ओ-नज़र दीदा-वर पे डाल दिया

अब इस को नफ़ा कहीं या ख़सारा-ए-उल्फ़त

जो दाग़ उस ने दिल-ए-मो'तबर पे डाल दिया

क़रीब ओ दूर यहाँ हम-सफ़र नहीं कोई

तिरी तलब ने ये किस रहगुज़र पे डाल दिया

हुसूल-ए-मंज़िल-ए-जानाँ से हाथ धो लेंगे

कुछ और बोझ जो पा-ए-सफ़र पे डाल दिया

जो हम-अज़ाब था उस की ही छाँव में आ कर

ख़ुद अपनी धूप का लश्कर शजर पे डाल दिया

भटक रहा था जो असरार-ए-फ़न की वादी में

उरूज दे के फ़राज़-ए-हुनर पे डाल दिया

बे-ए'तिदाल थे ख़ुद उन के ख़त्त-ओ-ख़ाल 'ज़फ़र'

हर इत्तिहाम मगर शीशागर पे डाल दिया

(1148) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Naqab Usne RuKH-e-husn-e-zar Pe Dal Diya In Hindi By Famous Poet Zafar Moradabadi. Naqab Usne RuKH-e-husn-e-zar Pe Dal Diya is written by Zafar Moradabadi. Complete Poem Naqab Usne RuKH-e-husn-e-zar Pe Dal Diya in Hindi by Zafar Moradabadi. Download free Naqab Usne RuKH-e-husn-e-zar Pe Dal Diya Poem for Youth in PDF. Naqab Usne RuKH-e-husn-e-zar Pe Dal Diya is a Poem on Inspiration for young students. Share Naqab Usne RuKH-e-husn-e-zar Pe Dal Diya with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.