आता है याद मुझ को
आता है याद मुझ को स्कूल का ज़माना
वो दोस्तों की सोहबत वो क़हक़हे लगाना
अनवर अज़ीज़ राजू मुन्नू के साथ मिल कर
वो तालियाँ बजाना बंदर को मुँह चिड़ाना
रो रो के माँगना वो अम्मी से रोज़ पैसे
जा जा के होटलों में बर्फ़ी मलाई खाना
पढ़ने को जब भी घर पर कहते थे मेरे भाई
करता था दर्द-ए-सर का अक्सर ही मैं बहाना
मिलती नहीं थी फ़ुर्सत दिन रात खेलने से
यूँ राएगाँ हुआ था पढ़ने का वो ज़माना
कैसे कहूँ किसी से अब क्या है हाल मेरा
खाने को मुश्किलों से मिलता है एक दाना
हर इक क़दम पे लगती है ठोकरों पे ठोकर
जा कर रहूँ कहाँ पर मिलता नहीं ठिकाना
अफ़सर बने हैं इस दम मेरे ही हम-जमाअत
उन से हया के मारे पड़ता है मुँह छुपाना
बच्चो न तुम समझना हरगिज़ इसे कहानी
ये है तुम्हारे हक़ में इबरत का ताज़ियाना
होगा भला तुम्हारा सुन लो 'ज़फ़र' की बातें
खेलो ज़रूर लेकिन पढ़ने में दिल लगाना
(1321) Peoples Rate This