इस ज़माने की अजब तिश्ना-लबी है ऐ 'ज़फ़र'
प्यास उस की सिर्फ़ बुझती है हमारे ख़ून से
Javed Akhtar
Gulzar
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इश्क़ जब से हो गया इक लखनवी ख़ातून से
निगाहों में जो मंज़र हो वही सब कुछ नहीं होता
कव्वा और कोयल
शौहरों से बीबियाँ लड़ती हैं छापा-मार जंग
मोहब्बत की जिस को ख़ुमारी लगे
नन्हा पौदा
तराना
शरीर बच्चे
गुड़िया की शादी