वो बहुत चालाक है लेकिन अगर हिम्मत करें
पहला पहला झूट है उस को यक़ीं आ जाएगा
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एक दिन सुब्ह जो उट्ठें तो ये दुनिया ही न हो
सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा
जहाँ से कुछ न मिले हुस्न-ए-माज़रत के सिवा
आँख के एक इशारे से किया गुल उस ने
शब-ए-विसाल तिरे दिल के साथ लग कर भी
इक लहर है कि मुझ में उछलने को है 'ज़फ़र'
जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता
हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत
हवा शाख़ों में रुकने और उलझने को है इस लम्हे
यूँ तो है ज़ेर-ए-नज़र हर माजरा देखा हुआ
किस ताज़ा मारके पे गया आज फिर 'ज़फ़र'
ज़मीं पे एड़ी रगड़ के पानी निकालता हूँ