तुम ही बतलाओ कि उस की क़द्र क्या होगी तुम्हें
जो मोहब्बत मुफ़्त में मिल जाए आसानी के साथ
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ये बात अलग है मिरा क़ातिल भी वही था
मैं ज़ियादा हूँ बहुत उस के लिए अब तक भी
वक़्त ज़ाए न करो हम नहीं ऐसे वैसे
सिर्फ़ आँखें थीं अभी उन में इशारे नहीं थे
इस बार मिली है जो नतीजे में बुराई
लगता है इतना वक़्त मिरे डूबने में क्यूँ
इस तरह भी चला है कभी कारोबार-ए-शौक़
उस को भी याद करने की फ़ुर्सत न थी मुझे
अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है
ये भी मुमकिन है कि इस कार-गह-ए-दिल में 'ज़फ़र'
बेवफ़ाई करके निकलूँ या वफ़ा कर जाऊँगा
हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत