तुम अपनी मस्ती में आन टकराए मुझ से यक-दम
इधर से मैं भी तो बे-ध्यानी में जा रहा था
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जिस का इंकार हथेली पे लिए फिरता हूँ
आबा तो 'ज़फ़र' नहीं थे ऐसे
इक धूप सी तनी हुई बादल के आर-पार
उसी से आए हैं आशोब आसमाँ वाले
तिरा चढ़ा हुआ दरिया समझ में आता है
हाथ पैर आप ही मैं मार रहा हूँ फ़िलहाल
हर नया ज़ाइक़ा छोड़ा है जो औरों के लिए
न गुमाँ रहने दिया है न यक़ीं रहने दिया
न कोई ज़ख़्म लगा है न कोई दाग़ पड़ा है
न घाट है कोई अपना न घर हमारा हुआ
हर बार मदद के लिए औरों को पुकारा
बात ऐसी भी कोई नहीं कि मोहब्बत बहुत ज़ियादा है