तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी
ईद अब के भी दबे पाँव गुज़र जाएगी
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यूँ तो किस चीज़ की कमी है
टकटकी बाँध के मैं देख रहा हूँ जिस को
ज़मीं पे एड़ी रगड़ के पानी निकालता हूँ
सुनोगे लफ़्ज़ में भी फड़फड़ाहट
हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत
न गुमाँ रहने दिया है न यक़ीं रहने दिया
मुस्तरद हो गया जब तेरा क़ुबूला हुआ मैं
मौसम का हाथ है न हवा है ख़लाओं में
हद हो चक्की है शर्म-ए-शकेबाई ख़त्म हो
'ज़फ़र' फ़सानों कि दास्तानों में रह गए हैं
ये क्या फ़ुसूँ है कि सुब्ह-ए-गुरेज़ का पहलू