रौ में आए तो वो ख़ुद गर्मी-ए-बाज़ार हुए
हम जिन्हें हाथ लगा कर भी गुनहगार हुए
Gulzar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Anwar Masood
Javed Akhtar
Parveen Shakir
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ब-ज़ाहिर सेहत अच्छी है जो बीमारी ज़ियादा है
यूँ तो है ज़ेर-ए-नज़र हर माजरा देखा हुआ
रखता हूँ अपना आप बहुत खींच-तान कर
दिन पर सोच सुलगती है या कभी रात के बारे में
अभी मेरी अपनी समझ में भी नहीं आ रही
उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहीं
यूँ तो किस चीज़ की कमी है
मैं अंदर से कहीं तब्दील होना चाहता था
ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी का
ख़राबी हो रही है तो फ़क़त मुझ में ही सारी
दिन चढ़े होना न होना एक सा रह जाएगा
वो एक तरहा से इक़रार करने आया था