मैं डूबता जज़ीरा था मौजों की मार पर
चारों तरफ़ हवा का समुंदर सियाह था
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1420) Peoples Rate This
कुछ सबब ही न बने बात बढ़ा देने का
मैं भी शरीक-ए-मर्ग हूँ मर मेरे सामने
मुस्तरद हो गया जब तेरा क़ुबूला हुआ मैं
रह रह के ज़बानी कभी तहरीर से हम ने
अपनी मर्ज़ी से भी हम ने काम कर डाले हैं कुछ
वो मुझ से अपना पता पूछने को आ निकले
बाहर से चट्टान की तरह हूँ
शब-ए-विसाल तिरे दिल के साथ लग कर भी
वही मिरे ख़स-ओ-ख़ाशाक से निकलता है
भरी रहे अभी आँखों में उस के नाम की नींद
भूल बैठा था मगर याद भी ख़ुद मैं ने किया
बात मुझ में भी कुछ इस तरह की होगी जो यहाँ