दिन चढ़े होना न होना एक सा रह जाएगा
ये भी क्या कम है कि अब से रात भर बाक़ी हूँ मैं
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1080) Peoples Rate This
तक़ाज़ा हो चुकी है और तमन्ना हो रहा है
ये हाल है तो बदन को बचाइए कब तक
आग का रिश्ता निकल आए कोई पानी के साथ
मिलूँ उस से तो मिलने की निशानी माँग लेता हूँ
इस बार मिली है जो नतीजे में बुराई
है और बात बहुत मेरी बात से आगे
ये हम जो पेट से ही सोचते हैं शाम ओ सहर
खींच लाई है यहाँ लज़्ज़त-ए-आज़ार मुझे
ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए
इश्क़ उदासी के पैग़ाम तो लाता रहता है दिन रात
दिन पर सोच सुलगती है या कभी रात के बारे में
कुछ भी न उस की ज़ीनत-ओ-ज़ेबाई से हुआ