चूमने के लिए थाम रख्खूँ कोई दम वो हाथ
और वो पाँव रंग-ए-हिना के लिए छोड़ दूँ
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तिरे आसमाँ की ज़मीं हो गया हूँ
अब उस की दीद मोहब्बत नहीं ज़रूरत है
ख़राबी हो रही है तो फ़क़त मुझ में ही सारी
तिलिस्म-ए-होश-रुबा में पतंग उड़ती है
यहाँ सब से अलग सब से जुदा होना था मुझ को
कोई किनाया कहीं और बात करते हुए
अभी तो करना पड़ेगा सफ़र दोबारा मुझे
हवा-ए-वादी-ए-दुश्वार से नहीं रुकता
एक ही बार नहीं है वो दोबारा कम है
आँखों में राख डाल के निकला हूँ सैर को
वो चेहरा हाथ में ले कर किताब की सूरत
जिस ने नफ़रत ही मुझे दी न 'ज़फ़र' प्यार दिया