चेहरे से झाड़ पिछले बरस की कुदूरतें
दीवार से पुराना कैलन्डर उतार दे
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पता चला कोई गिर्दाब से गुज़रते हुए
जहाँ मेरे न होने का निशाँ फैला हुआ है
मिला तो मंज़िल-ए-जाँ में उतारने न दिया
परियों ऐसा रूप है जिस का लड़कों ऐसा नाँव
हर नया ज़ाइक़ा छोड़ा है जो औरों के लिए
ऐसी कोई दरपेश हवा आई हमारे
जहाँ से कुछ न मिले हुस्न-ए-माज़रत के सिवा
ब-ज़ाहिर सेहत अच्छी है जो बीमारी ज़ियादा है
सच है कि हम से बात भी करना नमाज़ है
मुझे ख़राब किया उस ने हाँ किया होगा
यहीं तक लाई है ये ज़िंदगी भर की मसाफ़त
रोक रखना था अभी और ये आवाज़ का रस