रुख़-ए-ज़ेबा इधर नहीं करता

रुख़-ए-ज़ेबा इधर नहीं करता

चाहता है मगर नहीं करता

सोचता है मगर समझता नहीं

देखता है नज़र नहीं करता

बंद है उस का दर अगर मुझ पर

क्यूँ मुझे दर-ब-दर नहीं करता

हर्फ़-ए-इंकार और इतना तवील

बात को मुख़्तसर नहीं करता

न करे शहर में वो है तो सही

मेहरबानी अगर नहीं करता

हुस्न उस का उसी मक़ाम पे है

ये मुसाफ़िर सफ़र नहीं करता

जा के समझाएँ क्या उसे कि 'ज़फ़र'

तू भी तो दरगुज़र नहीं करता

(2638) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

RuKH-e-zeba Idhar Nahin Karta In Hindi By Famous Poet Zafar Iqbal. RuKH-e-zeba Idhar Nahin Karta is written by Zafar Iqbal. Complete Poem RuKH-e-zeba Idhar Nahin Karta in Hindi by Zafar Iqbal. Download free RuKH-e-zeba Idhar Nahin Karta Poem for Youth in PDF. RuKH-e-zeba Idhar Nahin Karta is a Poem on Inspiration for young students. Share RuKH-e-zeba Idhar Nahin Karta with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.