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पैदा ये ग़ुबार क्यूँ हुआ है - ज़फ़र इक़बाल कविता - Darsaal

पैदा ये ग़ुबार क्यूँ हुआ है

पैदा ये ग़ुबार क्यूँ हुआ है

और आख़िरी बार क्यूँ हुआ है

मैं कब से खड़ा हूँ इस किनारे

दरिया मिरे पार क्यूँ हुआ है

सब कुछ तब्दील होते होते

शबनम से शरार क्यूँ हुआ है

देखा हुआ रास्ता ये मेरा

दुश्वार-गुज़ार क्यूँ हुआ है

घेरे में लिए हुए हूँ ख़ुद को

हर-सू ये हिसार क्यूँ हुआ है

जो पाँव पकड़ रहा था पहले

अब सर पे सवार क्यूँ हुआ है

छोड़ा था जो काम दिल ने उस पर

फिर से तय्यार क्यूँ हुआ है

पहले तो नहीं था ये तरीक़ा

मजमा ये क़तार क्यूँ हुआ है

आबा तो 'ज़फ़र' नहीं थे ऐसे

फिर शेर शिआर क्यूँ हुआ है

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