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मेरे अंदर वो मेरे सिवा कौन था - ज़फ़र इक़बाल कविता - Darsaal

मेरे अंदर वो मेरे सिवा कौन था

मेरे अंदर वो मेरे सिवा कौन था

मैं तो था ही मगर दूसरा कौन था

लोग भी कुछ तआरुफ़ कराते रहे

मुझ को पहले ही मालूम था कौन था

लोग अंदाज़े ही सब लगाते रहे

वो जबीं किस की थी नक़्श-ए-पा कौन था

मुझ से मिल कर ही अंदाज़ा होगा कोई

वो अलग कौन था वो जुदा कौन था

कोई जिस पर न था मौसमों का असर

बाद सावन के भी वो हरा कौन था

जिस को अहवाल सारा था मालूम वो

बे-ख़बर रास्ते में पड़ा कौन था

मुंतज़िर जिस की दुनिया रही देर तक

दूर से कोई आता हुआ कौन था

आई जिस की महक उस से पहले कहीं

वो सवार-ए-कमंद-ए-हवा कौन था

रेज़ा रेज़ा ही पहचान में था 'ज़फ़र'

जानते थे सभी जा-ब-जा कौन था

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