किस नए ख़्वाब में रहता हूँ डुबोया हुआ मैं

किस नए ख़्वाब में रहता हूँ डुबोया हुआ मैं

एक मुद्दत हुई जागा नहीं सोया हुआ मैं

मेरी सूरज से मुलाक़ात भी हो सकती है

सूखने डाल दिया जाऊँ जो धोया हुआ मैं

मुझे बाहर नहीं सामान के अंदर ढूँडो

मिल भी सकता हूँ किसी शय में समोया हुआ मैं

बाज़याबी की तवक़्क़ो ही किसी को नहीं अब

अपनी दुनिया में हूँ इस तरहा से खोया हुआ मैं

शाम की आख़िरी आहट पे दहलता हुआ दिल

सुब्ह की पहली हवाओं में भिगोया हुआ मैं

आसमाँ पर कोई कोंपल सा निकल आऊँगा

साल-हा-साल से इस ख़ाक में बोया हुआ मैं

कभी चाहूँ भी तो अब जा भी कहाँ सकता हूँ

इस तरह से तिरे काँटे में पिरोया हुआ मैं

मेरे कहने के लिए बात नई थी न कोई

कह के चुप होगए सब लोग तो गोया हुआ मैं

मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो 'ज़फ़र'

साफ़ पहचान लिया जाता हूँ रोया हुआ मैं

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