ख़ुश बहुत फिरते हैं वो घर में तमाशा कर के
ख़ुश बहुत फिरते हैं वो घर में तमाशा कर के
काम निकला तो है उन का मुझे रुस्वा कर के
रोक रखना था अभी और ये आवाज़ का रस
बेच लेना था ये सौदा ज़रा महँगा कर के
इस तरफ़ काम हमारा तो नहीं है कोई
आ निकलते हैं किसी शाम तुम्हारा कर के
मिट गई है कोई मुड़ती हुई सी मौज-ए-हवा
छुप गया है कोई तारा सा इशारा कर के
फ़र्क़ इतना न सही इश्क़ ओ हवस में लेकिन
मैं तो मर जाऊँ तिरा रंग भी मैला कर के
साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ थी पानी की तरह नीयत दिल
देखने वालों ने देखा इसे गदला कर के
शौक़ से कीजिए और देर न फ़रमाइएगा
कुछ अगर आप को मिल जाएगा ऐसा कर के
यूँ भी सजती है बदन पर ये मोहब्बत क्या क्या
कभी पहनूँ इसी मल्बूस को उल्टा कर के
मुझ से छुड़वाए मिरे सारे उसूल उस ने 'ज़फ़र'
कितना चालाक था मारा मुझे तन्हा कर के
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