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खिड़कियाँ किस तरह की हैं और दर कैसा है वो - ज़फ़र इक़बाल कविता - Darsaal

खिड़कियाँ किस तरह की हैं और दर कैसा है वो

खिड़कियाँ किस तरह की हैं और दर कैसा है वो

सोचता हूँ जिस में वो रहता है घर कैसा है वो

कैसी वो आब-ओ-हवा है जिस में वो लेता है साँस

आता जाता है वो जिस पर रहगुज़र कैसा है वो

कौन सी रंगत के हैं उस के ज़मीन-ओ-आसमाँ

छाँव है जिस की यहाँ तक भी शजर कैसा है वो

इक नज़र में ही नज़र आ जाएगा वो सर-ब-सर

फिर भी उस को देखना बार-ए-दिगर कैसा है वो

मैं तो उस के एक इक लम्हे का रखता हूँ शुमार

और मेरे हाल-ए-दिल से बे-ख़बर कैसा है वो

उस का होना ही बहुत है वो कहीं है तो सही

क्या सरोकार इस से है मुझ को 'ज़फ़र' कैसा है वो

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