खड़ी है शाम कि ख़्वाब-ए-सफ़र रुका हुआ है
खड़ी है शाम कि ख़्वाब-ए-सफ़र रुका हुआ है
यक़ीन क्यूँ नहीं आता अगर रुका हुआ है
गुज़रने वाले थे जो भी गुज़र गए लेकिन
मियान-ए-राह कोई बे-ख़बर रुका हुआ है
बरस रहा है न छटता है ये कई दिन से
जो एक अब्र मिरी ख़ाक पर रुका हुआ है
रवाँ भी सिलसिला-ए-अश्क है अभी कुछ कुछ
ये क़ाफ़िला जो कहीं बेश-तर रुका हुआ है
अभी निकल नहीं सकता घरों से कोई यहाँ
कि सैल-ए-आब अभी दर-ब-दर रुका हुआ है
हर एक शय है किसी राख में बदलने को
कहीं जो ख़ाना-ए-ख़स में शरर रुका हुआ है
चली हुई थी मिरी बात जितने ज़ोरों से
उसी हिसाब से इस का असर रुका हुआ है
पहुँच सके किसी मंज़िल पे क्या मुसाफ़िर-ए-दिल
कि चल रहा है ब-ज़ाहिर मगर रुका हुआ है
ये हर्फ़ ओ सौत करिश्मे हैं सब उसी के 'ज़फ़र'
लहू के साथ रगों में जो डर रुका हुआ है
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