जिस्म के रेगज़ार में शाम-ओ-सहर सदा करूँ

जिस्म के रेगज़ार में शाम-ओ-सहर सदा करूँ

मंज़िल-ए-जाँ तो दूर है तय यही फ़ासला करूँ

ये जो रवाँ हैं चार-सू इतने धुएँ के आदमी

किस लिए चोब-ए-सब्ज़ को आग से आश्ना करूँ

क़ैद करे तो आप है क़ैद सहे तो आप है

मैं किसे रोकता फिरूँ और किसे रिहा करूँ

रात रुकी है आन कर ज़र्द सफ़ेद घास पर

लाख सुख़न है दरमियाँ किस से किसे जुदा करूँ

शाख़ हिली तो डर गया धूप खिली तो मर गया

काश कभी तो जीते जी सुब्ह का सामना करूँ

(1098) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jism Ke Regzar Mein Sham-o-sahar Sada Karun In Hindi By Famous Poet Zafar Iqbal. Jism Ke Regzar Mein Sham-o-sahar Sada Karun is written by Zafar Iqbal. Complete Poem Jism Ke Regzar Mein Sham-o-sahar Sada Karun in Hindi by Zafar Iqbal. Download free Jism Ke Regzar Mein Sham-o-sahar Sada Karun Poem for Youth in PDF. Jism Ke Regzar Mein Sham-o-sahar Sada Karun is a Poem on Inspiration for young students. Share Jism Ke Regzar Mein Sham-o-sahar Sada Karun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.