Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_9ca3d455c0ede585c4da4f4b08a8eb07, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत - ज़फ़र इक़बाल कविता - Darsaal

हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत

हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत

हरीफ़-ए-हर्फ़ मगर अब के दू-ब-दू है बहुत

वक़ार घर की तवाज़ो ही पर नहीं मौक़ूफ़

ब-फ़ैज़-ए-शाइरी बाहर भी आबरू है बहुत

फटे पुराने दिलों की ख़बर नहीं लेता

अगरचे जानता है हाजत-ए-रफ़ू है बहुत

बदन का सारा लहू खिंच के आ गया रुख़ पर

वो एक बोसा हमें दे के सुर्ख़-रू है बहुत

इधर उधर यूँ ही मुँह मारते भी हैं लेकिन

ये मानते भी हैं दिल से कि हम को तू है बहुत

अब उस की दीद मोहब्बत नहीं ज़रूरत है

कि उस से मिल के बिछड़ने की आरज़ू है बहुत

यही है बे-सर-ओ-पा बात कहने का मौक़ा'

पता चलेगा किसे शोर चार-सू है बहुत

ये हाल है तो बदन को बचाइए कब तक

सदा में धूप बहुत है लहू में लू है बहुत

यही है फ़िक्र कहीं मान ही न जाएँ 'ज़फ़र'

हमारे मोजज़ा-ए-फ़न पे गुफ़्तुगू है बहुत

(1208) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hamein Bhi Matlab-o-mani Ki Justuju Hai Bahut In Hindi By Famous Poet Zafar Iqbal. Hamein Bhi Matlab-o-mani Ki Justuju Hai Bahut is written by Zafar Iqbal. Complete Poem Hamein Bhi Matlab-o-mani Ki Justuju Hai Bahut in Hindi by Zafar Iqbal. Download free Hamein Bhi Matlab-o-mani Ki Justuju Hai Bahut Poem for Youth in PDF. Hamein Bhi Matlab-o-mani Ki Justuju Hai Bahut is a Poem on Inspiration for young students. Share Hamein Bhi Matlab-o-mani Ki Justuju Hai Bahut with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.