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है कोई इख़्तियार दुनिया पर - ज़फ़र इक़बाल कविता - Darsaal

है कोई इख़्तियार दुनिया पर

है कोई इख़्तियार दुनिया पर

न हमें ए'तिबार दुनिया पर

अपना दार-ओ-मदार दिल पर है

आप का इन्हिसार दुनिया पर

जब झड़ा मेरा आख़िरी पत्ता

आ चुकी थी बहार दुनिया पर

हमला-आवर हवा ख़ुदा ख़ुद भी

इस नहीफ़-ओ-नज़ार दुनिया पर

जब कोई अब्र झूम कर बरसा

छा रहा था ग़ुबार दुनिया पर

डाल रक्खी थी कोई ख़ुद उस ने

चादर-ए-इंतिज़ार दुनिया पर

सारा इल्ज़ाम धर दिया कैसा

हम ने पायान-ए-कार दुनिया पर

यूँ तवक़्क़ो ही बाँधना थी ग़लत

ऐसी ना-पाएदार दुनिया पर

हम पे दुनिया हुई सवार 'ज़फ़र'

और हम हैं सवार दुनिया पर

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