है कोई इख़्तियार दुनिया पर
है कोई इख़्तियार दुनिया पर
न हमें ए'तिबार दुनिया पर
अपना दार-ओ-मदार दिल पर है
आप का इन्हिसार दुनिया पर
जब झड़ा मेरा आख़िरी पत्ता
आ चुकी थी बहार दुनिया पर
हमला-आवर हवा ख़ुदा ख़ुद भी
इस नहीफ़-ओ-नज़ार दुनिया पर
जब कोई अब्र झूम कर बरसा
छा रहा था ग़ुबार दुनिया पर
डाल रक्खी थी कोई ख़ुद उस ने
चादर-ए-इंतिज़ार दुनिया पर
सारा इल्ज़ाम धर दिया कैसा
हम ने पायान-ए-कार दुनिया पर
यूँ तवक़्क़ो ही बाँधना थी ग़लत
ऐसी ना-पाएदार दुनिया पर
हम पे दुनिया हुई सवार 'ज़फ़र'
और हम हैं सवार दुनिया पर
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