Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_7aea3d55a22c0981ac8f8fa739dbebe9, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
एक ही बार नहीं है वो दोबारा कम है - ज़फ़र इक़बाल कविता - Darsaal

एक ही बार नहीं है वो दोबारा कम है

एक ही बार नहीं है वो दोबारा कम है

मैं वो दरिया हूँ जिसे अपना किनारा कम है

वही तकरार है और एक वही यकसानी

इस शब-ओ-रोज़ में अब अपना गुज़ारा कम है

मेरे दिन रात में करना नहीं अब इस को शुमार

हिस्सा-ए-उम्र कोई मैं ने गुज़ारा कम है

मैं ज़ियादा हूँ बहुत उस के लिए अब तक भी

और मेरे लिए वो सारे का सारा कम है

उस की अपनी भी तवज्जोह नहीं मुझ पर कोई ख़ास

और मैं ने भी अभी उस को पुकारा कम है

आज पानी जो उछलता नहीं पहले की तरह

ऐसा लगता है कि इस में कोई धारा कम है

हाथ पैर आप ही मैं मार रहा हूँ फ़िलहाल

डूबते को अभी तिनके का सहारा कम है

मैं तो रखता हूँ बहुत रोज़ के रोज़ इन का हिसाब

आसमाँ पर कोई आज एक सितारा कम है

पेश-रफ़्त और अभी मुमकिन भी नहीं है कि 'ज़फ़र'

अभी उस शोख़ पे कुछ ज़ोर हमारा कम है

(1151) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ek Hi Bar Nahin Hai Wo Dobara Kam Hai In Hindi By Famous Poet Zafar Iqbal. Ek Hi Bar Nahin Hai Wo Dobara Kam Hai is written by Zafar Iqbal. Complete Poem Ek Hi Bar Nahin Hai Wo Dobara Kam Hai in Hindi by Zafar Iqbal. Download free Ek Hi Bar Nahin Hai Wo Dobara Kam Hai Poem for Youth in PDF. Ek Hi Bar Nahin Hai Wo Dobara Kam Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Ek Hi Bar Nahin Hai Wo Dobara Kam Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.