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चलो इतनी तो आसानी रहेगी - ज़फ़र इक़बाल कविता - Darsaal

चलो इतनी तो आसानी रहेगी

चलो इतनी तो आसानी रहेगी

मिलेंगे और परेशानी रहेगी

इसी से रौनक़-ए-दरिया-ए-दिल है

यही इक लहर तूफ़ानी रहेगी

कभी ये शौक़ ना-मानूस होगा

कभी वो शक्ल अनजानी रहेगी

निकल जाएगी सूरत आइने से

हमारे घर में हैरानी रहेगी

सुबुक-सर हो के जीना है कोई दिन

अभी कुछ दिन गिराँ-जानी रहेगी

सुनोगे लफ़्ज़ में भी फड़फड़ाहट

लहू में भी पर-अफ़्शानी रहेगी

हमारी गर्म-गुफ़्तारी के बा-वस्फ़

हवा इतनी ही बर्फ़ानी रहेगी

अभी दिल की सियाही ज़ोर पर है

अभी चेहरे पे ताबानी रहेगी

'ज़फ़र' मैं शहर में आ तो गया हूँ

मिरी ख़सलत बयाबानी रहेगी

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