ज़िंदगी को कर गया जंगल कोई
ले गया ख़ुशियों का मेरी पल कोई
धँस रहा है हर क़दम मेरा यहाँ
राह में दरपेश है दलदल कोई
कोई कंकर फेंकने वाला नहीं
कैसे फिर हो झील में हलचल कोई
ज़िंदगी थी एक सहरा की तरह
ज़िंदगी को कर गया जल-थल कोई
होश भी अपना नहीं रहता मुझे
कर रहा कितना 'ज़फ़र' पागल कोई