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लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है - ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र कविता - Darsaal

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

हर इक जानिब मगर अंधा कुआँ है

है कोई अक्स-ए-रंगीं आइने पर

जब ही तो आइने में कहकशाँ है

जुदाई का न क़िस्सा वस्ल का है

अधूरी किस क़दर ये दास्ताँ है

किसी से कोई भी मिलता नहीं अब

हर इक इंसाँ यहाँ तो बद-गुमाँ है

नहीं कुछ बोलते हैं जब्र सह कर

लगे तरशी हुई सब की ज़बाँ है

वतन में रह के भी है बे-वतन ये

बहुत मज़लूम ये उर्दू ज़बाँ है

किसी का दर्द बाँटे ग़म में रोए

'ज़फ़र' एहसास लोगों में कहाँ है

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Labon Par Pyas Sab Ke Be-karan Hai In Hindi By Famous Poet Zafar Iqbal Zafar. Labon Par Pyas Sab Ke Be-karan Hai is written by Zafar Iqbal Zafar. Complete Poem Labon Par Pyas Sab Ke Be-karan Hai in Hindi by Zafar Iqbal Zafar. Download free Labon Par Pyas Sab Ke Be-karan Hai Poem for Youth in PDF. Labon Par Pyas Sab Ke Be-karan Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Labon Par Pyas Sab Ke Be-karan Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.