कनीज़-ए-वक़्त को नीलाम कर दिया सब ने
कनीज़-ए-वक़्त को नीलाम कर दिया सब ने
ये वहम क्या है बड़ा काम कर दिया सब ने
कोई भी शख़्स सेहत-मंद क्या नज़र आए
मुनाफ़रत का सबक़ आम कर दिया सब ने
मिली न जब उन्हें ता'बीर अपने ख़्वाबों की
फिर अपनी आँखों को नीलाम कर दिया सब ने
बुरा समझ के बुज़ुर्गों ने जिस को छोड़ा था
वो कार-ए-बद ख़ुश-अंजाम दिया सब ने
हर एक सच को तो मंसूब कर लिया ख़ुद से
तमाम झूट मिरे नाम कर दिया सब ने
जो अपने अहद को सच्चाई बाँटता था 'ज़फ़र'
उस एक शख़्स को बदनाम कर दिया सब ने
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