ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र
नाम | ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र |
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अंग्रेज़ी नाम | Zafar Iqbal Zafar |
जन्म स्थान | fatahpur |
मोम के लोग कड़ी धूप में आ बैठे हैं
ज़िंदगी को शो'बदा समझा था मैं
ज़िंदगी को कर गया जंगल कोई
वो नहीं उस की मगर जादूगरी मौजूद है
सर-बुरीदा हुआ मुक़ाबिल है
सहरा का सफ़र था तो शजर क्यूँ नहीं आया
सफ़र का सिलसिला आख़िर कहाँ तमाम करूँ
राब्ता क्यूँ रखूँ मैं दरिया से
पाई हमेशा रेत भँवर काटने के बा'द
लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है
लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है
कनीज़-ए-वक़्त को नीलाम कर दिया सब ने
जो बे-घर हैं उन्हें घर की दुआ देती हैं दीवारें
जिस रोज़ से अपना मुझे इदराक हुआ है
हर आदमी कहाँ औज-ए-कमाल तक पहुँचा
एक जुम्बिश में कट भी सकते हैं
एक इक पल तिरा नायाब भी हो सकता है
दिल-ओ-निगाह को वीरान कर दिया मैं ने
दरिया गुज़र गए हैं समुंदर गुज़र गए
चमका जो तीरगी में उजाला बिखर गया
आइना देखें न हम अक्स ही अपना देखें