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दर्द बहता है दरिया के सीने में पानी नहीं - ज़फर इमाम कविता - Darsaal

दर्द बहता है दरिया के सीने में पानी नहीं

दर्द बहता है दरिया के सीने में पानी नहीं

उस का चट्टान पे सर पटकना कहानी नहीं

बात पहुँचे समाअत को तासीर दे किस तरह

लफ़्ज़ हैं और लफ़्ज़ों में ज़ोर-ए-बयानी नहीं

टूट जाएगी दीवार जितनी भी मज़बूत हो

उस के एहसास की धूप भी साएबानी नहीं

क्या समझ-बूझ कर हम भी अपना ख़ुदा हो गए

जैसे दुनिया हमेशा की हो दार-ए-फ़ानी नहीं

डूबते डूबते नाव पहुँचेगी इक दिन ज़रूर

मेरे साहिल पे दरिया तिरी मेहरबानी नहीं

हम सभी एक रिश्ते की मंजधार में क़ैद हैं

चीख़ना कश्तियों का 'ज़फ़र' बे-मआनी नहीं

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