दर्द बहता है दरिया के सीने में पानी नहीं
दर्द बहता है दरिया के सीने में पानी नहीं
उस का चट्टान पे सर पटकना कहानी नहीं
बात पहुँचे समाअत को तासीर दे किस तरह
लफ़्ज़ हैं और लफ़्ज़ों में ज़ोर-ए-बयानी नहीं
टूट जाएगी दीवार जितनी भी मज़बूत हो
उस के एहसास की धूप भी साएबानी नहीं
क्या समझ-बूझ कर हम भी अपना ख़ुदा हो गए
जैसे दुनिया हमेशा की हो दार-ए-फ़ानी नहीं
डूबते डूबते नाव पहुँचेगी इक दिन ज़रूर
मेरे साहिल पे दरिया तिरी मेहरबानी नहीं
हम सभी एक रिश्ते की मंजधार में क़ैद हैं
चीख़ना कश्तियों का 'ज़फ़र' बे-मआनी नहीं
(1472) Peoples Rate This