ज़फर इमाम कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़फर इमाम
नाम | ज़फर इमाम |
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अंग्रेज़ी नाम | Zafar Imam |
उजाला अपने घरौंदे में रह गया तो रात
साफ़ जज़्बों के हवाले से तो ग़म हैं लेकिन
क्या जाने कब धरती पर सैलाब का मंज़र हो जाए
जीवन का संगीत अचानक अंतिम सुर को छू लेता है
जल्द मंज़िल तक पहुँचने का जुनूँ उस को रहा
इक नदी में सैकड़ों दरिया की तुग़्यानी मिली
देख लेते हैं अंधेरे में भी रस्ता अपना
बात पहुँचे समाअत को तासीर दे किस तरह
साहिल पर दरिया की लहरें सज्दा करती रहती हैं
मेरे अंदर का ग़ुरूर अंदर गुज़रता रह गया
मैं ही दस्तक देने वाला मैं ही दस्तक सुनने वाला
इक नदी में सैकड़ों दरिया की तुग़्यानी मिली
धूप निकली कभी बादल से ढकी रहती है
दर्द बहता है दरिया के सीने में पानी नहीं
भले ही आँख मिरी सारी रात जागेगी