झील में उस का पैकर देखा जैसे शोला पानी में

झील में उस का पैकर देखा जैसे शोला पानी में

ज़ुल्फ़ की लहरें पेचाँ जैसे नाग हो लपका पानी में

चाँदनी शब में उस के पीछे जब मैं उतरा पानी में

चाँदी और सीमाब लगा था पिघला पिघला पानी में

कितने रंग की मछलियाँ आईं ललचाती और बल खाती

क़तरा क़तरा मेरी रगों से ख़ून जो टपका पानी में

रौशन रौशन रंग निराले कैसे नादिर कितने हबाब

क़ुल्ज़ुम-ए-हस्ती रक़्स में था या एक तमाशा पानी में

एक क़लंदर ढूँड रहा था चाँद सितारों में जा कर

उस का ख़ुदा तो पोशीदा था अन्क़ा जैसा पानी में

मुझ को ये महसूस हुआ था अपने अहद का ख़िज़्र हूँ मैं

चुपके चुपके जब भी मैं ने ख़िज़्र को ढूँडा पानी में

आलाइश दाग़ों से भरा ये तेरा बदन इक रोज़ 'ज़फ़र'

रहमत की घटा जब बरसी थी तो साफ़ हुआ था पानी में

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