Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_430572259ccbeb24f4608e1e061ab1a3, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सिलसिले के बाद कोई सिलसिला रौशन करें - ज़फ़र गोरखपुरी कविता - Darsaal

सिलसिले के बाद कोई सिलसिला रौशन करें

सिलसिले के बाद कोई सिलसिला रौशन करें

इक दिया जब साथ छोड़े दूसरा रौशन करें

इस तरह तो और भी कुछ बोझ हो जाएगी रात

कुछ कहें कोई चराग़-ए-वाक़िआ रौशन करें

जाने वाले साथ अपने ले गए अपने चराग़

आने वाले लोग अपना रास्ता रौशन करें

जलती बुझती रौशनी का खेल बच्चों को दिखाएँ

शम्अ रक्खें हाथ में घर में हवा रौशन करें

आगही दानिश दुआ जज़्बा अक़ीदा फ़ल्सफ़ा

इतनी क़ब्रें हाए किस किस पर दिया रौशन करें

शाम यादों से मोअत्तर है मुनव्वर है 'ज़फ़र'

आज ख़ुशबू के वज़ू से दस्त ओ पा रौशन करें

(1051) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Silsile Ke Baad Koi Silsila Raushan Karen In Hindi By Famous Poet Zafar Gorakhpuri. Silsile Ke Baad Koi Silsila Raushan Karen is written by Zafar Gorakhpuri. Complete Poem Silsile Ke Baad Koi Silsila Raushan Karen in Hindi by Zafar Gorakhpuri. Download free Silsile Ke Baad Koi Silsila Raushan Karen Poem for Youth in PDF. Silsile Ke Baad Koi Silsila Raushan Karen is a Poem on Inspiration for young students. Share Silsile Ke Baad Koi Silsila Raushan Karen with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.