रौशनी परछाईं पैकर आख़िरी

रौशनी परछाईं पैकर आख़िरी

देख लूँ जी भर के मंज़र आख़िरी

मैं हवा के झक्कड़ों के दरमियाँ

और तन पर एक चादर आख़िरी

ज़र्ब इक ठहरे हुए पानी पे और

जाते जाते फेंक कंकर आख़िरी

दोनों मुजरिम आइने के सामने

पहला पत्थर हो कि पत्थर आख़िरी

टूटती इक दिन लहू की ख़ामुशी

देख लेते हम भी महशर आख़िरी

ये भी टूटा तो कहाँ जाएँगे हम

इक तसव्वुर ही तो है घर आख़िरी

दिल मुसलसल ज़ख़्म चाहे है 'ज़फ़र'

और उस के पास पत्थर आख़िरी

(1006) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Raushni Parchhain Paikar AaKHiri In Hindi By Famous Poet Zafar Gorakhpuri. Raushni Parchhain Paikar AaKHiri is written by Zafar Gorakhpuri. Complete Poem Raushni Parchhain Paikar AaKHiri in Hindi by Zafar Gorakhpuri. Download free Raushni Parchhain Paikar AaKHiri Poem for Youth in PDF. Raushni Parchhain Paikar AaKHiri is a Poem on Inspiration for young students. Share Raushni Parchhain Paikar AaKHiri with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.