Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_ca783985fef0b8f6caf8a7cac3213da3, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
उभरते डूबते तारों के भेद खोलेगा - ज़फ़र गौरी कविता - Darsaal

उभरते डूबते तारों के भेद खोलेगा

उभरते डूबते तारों के भेद खोलेगा

फ़सील-ए-शब से उतर कर कोई तो बोलेगा

ये अहद वो है जो क़ाइल नहीं सहीफ़ों का

ये हर्फ़ हर्फ़ को मस्लूब कर के तोलेगा

उतर ही जाएगा रग रग में आज ज़हर-ए-सुकूत

वो प्यार से मिरे लहजे में शहद घोलेगा

मिरा नसीब ही ठहरा जो राब्तों की शिकस्त

तिलिस्म-ए-जाँ का भी ये क़ुफ़्ल कोई खोलेगा

जो सूने दिल में कहीं बस गया कोई आसेब

जहाँ भी जाओगे साया सा साथ हो लेगा

है आज वक़्त 'ज़फ़र' दिल की बात कह डालें

कभी तो वो भी ज़रा अपना दिल टटोलेगा

(973) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ubharte Dubte Taron Ke Bhed Kholega In Hindi By Famous Poet Zafar Ghauri. Ubharte Dubte Taron Ke Bhed Kholega is written by Zafar Ghauri. Complete Poem Ubharte Dubte Taron Ke Bhed Kholega in Hindi by Zafar Ghauri. Download free Ubharte Dubte Taron Ke Bhed Kholega Poem for Youth in PDF. Ubharte Dubte Taron Ke Bhed Kholega is a Poem on Inspiration for young students. Share Ubharte Dubte Taron Ke Bhed Kholega with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.