Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_13491dir09dhqhbj7fa63dfps2, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जारी है कब से मा'रका ये जिस्म-ओ-जाँ में सर्द सा - ज़फ़र गौरी कविता - Darsaal

जारी है कब से मा'रका ये जिस्म-ओ-जाँ में सर्द सा

जारी है कब से मा'रका ये जिस्म-ओ-जाँ में सर्द सा

छुप छुप के कोई मुझ में है मुझ से ही हम-नबर्द सा

जाते कहाँ कि ज़ेर-ए-पा था एक बहर-ए-ख़ूँ-किनार

उड़ते तो बार-ए-सर बना इक दश्त-ए-लाज-वर्द सा

किस चाँदनी की आँख से बिखरी शफ़क़ की रेत में

मोती सा ढल के गिर पड़ा शाम के दिल का दर्द सा

नाज़ुक लबों की पंखुड़ियाँ थरथरा थरथरा गईं

तेज़-रौ बाद-ए-दर्द थी चेहरा था गर्द गर्द सा

मेहंदी रची बहार का आँगन ख़ुशी से भर गया

मेहमाँ है घर में आज वो चाँद सुनहरा ज़र्द सा

देखा तो अहल-ए-शहर सब उस को ही लेने आए थे

इक अजनबी जो साथ था राह में कम-नवर्द सा

किस दस्त-ए-नाज़ में 'ज़फ़र' आईना-ए-वजूद था

बिखरा हूँ काएनात में हर सम्त फ़र्द फ़र्द सा

(854) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jari Hai Kab Se Marka Ye Jism-o-jaan Mein Sard Sa In Hindi By Famous Poet Zafar Ghauri. Jari Hai Kab Se Marka Ye Jism-o-jaan Mein Sard Sa is written by Zafar Ghauri. Complete Poem Jari Hai Kab Se Marka Ye Jism-o-jaan Mein Sard Sa in Hindi by Zafar Ghauri. Download free Jari Hai Kab Se Marka Ye Jism-o-jaan Mein Sard Sa Poem for Youth in PDF. Jari Hai Kab Se Marka Ye Jism-o-jaan Mein Sard Sa is a Poem on Inspiration for young students. Share Jari Hai Kab Se Marka Ye Jism-o-jaan Mein Sard Sa with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.