दिल की ज़ख़्मों को किया करता है ताज़ा हर-दम
फिर सितम ये है कि रोने भी नहीं देता है
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बात जब है कि हर इक फूल को यकसाँ समझो
जैब ओ गरेबाँ टुकड़े टुकड़े दामन को भी तार किया
ज़हर-ए-ग़म दिल में समोने भी नहीं देता है
सर में सौदा भी वही कूचा-ए-क़ातिल भी वही
ख़ून-ए-जिगर आँखों से बहाया ग़म का सहरा पार किया